न तो महफ़िल में सुकूँ
न तो महफ़िल में सुकूँ और न तन्हाई में
तड़प रहा हूँ पड़ा दर्द की अंगनाई में
‘असीम’ उससे जुदा हो के मैं जियूँ कैसे
दिल की धड़कन का सबब है उसी हरजाई में
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’
न तो महफ़िल में सुकूँ और न तन्हाई में
तड़प रहा हूँ पड़ा दर्द की अंगनाई में
‘असीम’ उससे जुदा हो के मैं जियूँ कैसे
दिल की धड़कन का सबब है उसी हरजाई में
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’