न जाने क्यों
न जाने क्यों
मेरे दिल को
तसल्ली न
मिले
कि मर के
मीत को
जैसे
ज़िन्दगी
न मिले कहीं पे
दर्द कराहा
कहीं पे
अश्क़ गिरे
हों जितने
खोये थे
अपने
हमें कहीं न मिले!
डाॅ फौज़िया नसीम शाद
न जाने क्यों
मेरे दिल को
तसल्ली न
मिले
कि मर के
मीत को
जैसे
ज़िन्दगी
न मिले कहीं पे
दर्द कराहा
कहीं पे
अश्क़ गिरे
हों जितने
खोये थे
अपने
हमें कहीं न मिले!
डाॅ फौज़िया नसीम शाद