न जानें, उस से क्या हैं!
न जानें, उस से क्या हैं!
मुस्कुराता मन, बेवज़ह हैं।
खोया रहता, जाने कहाँ!
मन भी ना, सोचता बेइंतहा हैं।
रंगहीन रहती हैं दुनियां!
एक लफ्ज़ उसकी, कर देती रंगीन सुबह हैं
उसका मिलना, जादुई लगता हैं!
उसकी नई तस्वीरों की झलक भी, एक फ़तह हैं।
उसकी हर बात, क्यूं सीधे लगती हैं!
कोई रिश्ता नहीं, फिर भी उसकी एक जगह हैं।
आज वक़्त मिला तो थोड़ा समझा खुद को!
यादों की ख्वाहिश रखता मन बेपनाह हैं।