न काबा दो न काशी दो
आतंक का जलवा देख रहा है जग कश्मीर की घाटी में
न जाने बो रहा कौन बारूद मुल्क की माटी में
वीर शहीदों ने जाँ अपनी जिस माटी में गँवाई है
गद्दारी की फसल उसी में फिर कैसे लहराई है
आतंकी की शवयात्रा में शामिल जो भी नगीने थे
बदनाम मुल्क को करने वाले कुत्ते और कमीने थे
आतंकी के समर्थन में जो लोग सड़क पर आए हैं
मुझे नहीं लगता वो केवल एक बाप के जाए हैं
आतंकवादियों की बाँहों में इज्जत बेंच के झूल गए
खैरात की लालच में कैसे सब अपने फर्ज को भूल गए
भूल गए मुम्बई में खेली गयी खून की होली जब
याद दिलाए कौन इन्हें संसद में गूँजी गोली अब
मेमन के रिश्तेदार और अफजल की हैं औलाद यही
खून-खराबा,चीखें,लाशें इनको कुछ भी याद नहीं
गूँज रही फरियाद यही निर्दोषों की चीत्कारों में
पाकिस्तान भेज दो इनको माँग उठी है नारों में
भारत माँ की शान में कोरी आन-बान लिखने वालों
सुन लो पुकार जनमानस की ऐ संविधान लिखने वालों
अपनी आँखें खोल जरा सच्चाई का रसपान करो
गद्दार पनपने न पाएँ अब ऐसा कोई विधान करो
वरना इक दिन नदी खून की हम भी बहाने निकलेंगे
तलवार हाथ में लेकर भारत माँ के सयाने निकलेंगे
धारा विशेष अब खत्म करो कश्मीर चढ़ाई करने दो
मत रोको अब आर-पार की हमें लड़ाई करने दो
आतंकवाद के मंत्र नये न किसी को अब पढ़ने देंगे
सीमा के आगे न किसी दुश्मन को हम बढ़ने देंगे
आतंक के महिमामंडन पर क्यों देशभक्त खामोश रहे
आतंकवाद पर राजनीति करने वालों ये होश रहे
सत्ता पाने के मद में तुम इतिहास भुलाकर मत बैठो
जनता ने किया है तुम पर जो विश्वास डिगाकर मत बैठो
खींच-खींच कर कुर्सी से तुम लोग उतारे जाओगे
गर यूँ ही खामोश रहे तो सारे मारे जाओगे
अब जागो ऐ कुम्भकर्ण की नींद में ओ सोने वालों
मगरमच्छ के आँसू आँखों में भरकर रोने वालों
भारत माँ के लिए हृदय में प्यार माँगने आया हूँ
ऐ संविधान तुझसे मैं ये अधिकार माँगने आया हूँ
देशद्रोही न बख्शा जाए देश को वो कानून मिले
गयी भाड़ में मानवता अब खून का बदला खून मिले
‘संजय’ मुल्क के दुश्मन को न काबा दो न काशी दो
माँग रही है देश की जनता इन सालों को फाँसी दो