“न कहो नारी को बेचारी”
“न कहो नारी को बेचारी”
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कोई क्यों कहे मुझे अबला नारी ,
न असहाय,कमजोर न हूं बेचारी ,
प्रचंड सजग आज सबला बनकर
शक्ति पुंज ज्वाला सब पर भारी।
सदियां बीती,जब पर्दा अधिकारी,
जीवन बीता,बन बंद चार दीवारी,
शूल घात यों झेले,ज्यों मूक प्राणी,
वही अब तीक्ष्ण कटार,लौहआरी।
अंध,मूढ़,विनाशी परिपाटी सारी,
रीति परम्पराओं की वेदी भारी ,
तोड़ जंजीरे सब जन मंडल की,
आज चण्डी,दुर्गा,काली,भवानी।
सृष्टि संचालिका,शक्ति प्रतीक नारी
मात्तृस्वरूपा,ओजस्वी,अलंकारी,
भूगर्भ समेत अन्तरिक्ष जानकारी, कल्याणकारी,सबला नहीं बेचारी।
शीला सिंह
बिलासपुर हिमाचल प्रदेश?