न कभी सच हो सकने वाली मेरी कल्पना / मुसाफिर बैठा
धरती गोल है
सच है मगर
दृश्य सच नहीं है यह
इधर
सवर्ण जात को मैं
जात के उत्पात को मैं
धरती से गोल होते देखना चाहता हूं
असुंदर दृश्य सच को इस गोले से गोल होते देखना चाहता हूं
जाति–धर्म के गलने सतत गलने की प्रक्रिया में परिणामी
भारत की धरती का अविकल सुंदर रूप पाना चाहता हूं।