नफ़रत से भी मोहब्बत
मोहब्बत के नाम से भी
नफ़रत सी थी हमें
पर मिली जबसे वो
गैरों से भी मोहब्बत हो गई
उसका हँसना, मुस्काना
बातों ही बातों में रुठ जाना
मेरा उसे हर पल मनाना
अब तो इबादत हो गई
मिली जबसे वो,
सारी कायनात ख़ूबसूरत हो गई!
अब तो बस यही चाह है
वो मैं, और हमारा आशियाना
जहाँ तंग ना करे
हमें ये नीरस जमाना
हर पल एक-दूजे के
हाथों में हाथ ले बैठे रहें
मैं उसे, वो मुझे तकती रहे।
बस तकती रहे।।
-✍️अटल©