नफ़रतों को भुलाकर
गुजिश्ता सभी नफरतों को भुला कर
मिटा दें सभी फासले साथ आ कर
भरी बज्म् में सुन कर तारीफ अपनी
गया है कोई रूठ कर, मुँह फुला कर
है अजदाद् की बेशकीमत विरासत
इस इज्ज्त को रखना हमेशा बचा कर
उसी को बहादुर लिखा क्यों गया है?
गया जो कभी पीठ अपनी दिखाकर
हमीं ने बनाया जमाने को दुश्मन
ख़यालात दिल में तुम्हारे बसाकर
घुटन थी अजब एक दिल में हमारे
मिली आज तस्कीन आंसू बहाकर
गिले जितने थे मिट गए मुस्करा कर
वह जब भी मिला हाथ मेरा दबाकर