नज़्म
नज़्म(सुख)
आगे जाने की चाह मे,
उनको भूल जाते है लोग,
जो सहयोग करते है राह मे।
बहुत कुछ पाने की चाह मे,
वो लोग छूटते चले जाते है,
जिन्होंने रोशनी की थी अंधेरी राह में।
सफलता के जश्न का क्या फायदा,
जिसमे वो लोग शामिल न हो,
जिन्होंने दुआएं करी तुम्हारे हक़ मे।
मंजिल मे मज़ा ही नही,
ये समझाये उन्हें कौन,
मज़ा तो है मंजिल के सफ़र मे।
वो मंजिल ही क्या,
जिससे जरूरत मंदो को फायदा न मिले,
सुकून तो है गरीबों का हित करने मे।
हम धन को महत्व देते रहे,
सत्ता की चाहत रखते रहे,
पर असली सुख तो है अच्छी सेहत मे।
शोएब खान शिवली
कानपुर देहात