नज़्म..
सोचता हूँ…
दोनो आस्तीनों के सहारे लटके,
मज़बूरियों का बैग उतार दूँ,
पीठ से अपनी..
और बदल दूँ ये खाल,
बदन की एक रोज़..।
सोचता हूँ…
जिस्म को सोते हुये छोड़कर,
मैली रूह निकाल लूँ चूपके से,
इसकी …
एक पानी निचोड़कर,
सूखा दूँ इसको भी,
एक रोज़…।
आसान है क्या !!!!
किसी ने करके देखा है?
कोई तजूर्बा है क्या;किसी को…??
@अनुराग©