नज़्म
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सभी तैयार खड़े हैं हाथ सेंकने को दोस्त।
चिता पे जलने को पर,कोई भी तैयार नहीं।
तुम सुलगाओ जो सिगरेट हम भी पी लेंगे।
तीली जलाने को हममें कोई भी तैयार नहीं।
मैं कहता हूँ तुम्हें, तुम भी इंतजार करो।
आखिर इस बात के लिए क्यों तुम तैयार नहीं।
यही एक नहीं,बहुत सारे मुद्दे हैं जहां बहस होगी।
हालात बदल जाएंगे हैं ऐसे कोई आसार नहीं।
पानी के एक कतरे के लिए ओठ लहूलुहान हुआ।
अब आग ओठ पे धरें रह जाएँ इश्तहार नहीं।
तमाम वक्त फिरा हाथों में अपने को उठा।
बाजिव दाम में बेच सकूँ ऐसा कोई बाजार नहीं।
मेरी नीलामी तेरे दाम को द्विगुणित है किया।
लोग जान पाते तुम्हें थे ऐसे कोई आसार नहीं।
—————-2/11/21——————————-