नज़्म – मिलन
मिलन
छोड़िये भी, क्या करेंगे उनसे मिल कर,
बात ना की जायगी, हम से सम्हल कर|
बात भी करली, तो समझूँगा मैं कैसे,
मायने हैं दोहरे, आते निकल कर|
मायने भी मानलो, आये समझ में,
क्या करूं जो रख दिया, मौज़ूं बदल कर?
कौन लेगा ये जमानत, ख़ामखां ही,
हो सकेगी हर तरह की, बात खुल कर|
है नहीं इतना तज़ुर्बा, प्यार का की,
थाम ही लूँगा सनम की, बांह चल कर|
और भी मुश्किल मुझे तब आ पड़ेगी,
गर नज़र आने लगें प्याले में ढल कर|
इसलिए कहता हूँ अय दिल, मान भी जा,
वजह भी तो चाहिए, मरने की जल कर||