न्याय होता है
एक बार धोखा खाया हुआ व्यक्ति, वो ही गलती हर बार करता है।
इस विश्वसनीयता का लाभ उठाकर, धूर्त विश्वास पे वार करता है।
यूॅं बार-बार विश्वासघात करने से, वो स्वतः सारा विश्वास खोता है।
प्रकृति चोट, प्राणत्व की खोट, प्रभु सभा में सबका न्याय होता है।
सदैव बुरे कर्म करने से ही, मानव पूरी मानवता को आरोपित करे।
छल व कपट करते रहने से, प्राणी अपने मोक्ष को अवरोधित करे।
भविष्य की कॅंटीली पौध को, वचनों से मनुष्य वर्तमान में बोता है।
प्राणी व प्रकृति इन दोनों का, परमात्मा की सभा में न्याय होता है।
किसी की भलाई नहीं सोचते, बुरी अवस्था देख लोग मुस्कुराते हैं।
यों अनैतिक व्यवहार करने से, मनुष्य-जाति शर्मसार कर जाते हैं।
ऐसे सभी लोगों को ईश्वर भी, पछतावे के अग्नि-कुंड में डुबोता है।
प्राणी व प्रकृति इन दोनों का, परमात्मा की सभा में न्याय होता है।
कुंठा, ईर्ष्या और क्रोध सभी, हमारे हृदय में विकार भरते रहते हैं।
लोभ-मोह के भाव न आए, पर दिल से यही विचार करते रहते हैं।
मोह की टोह लगते ही प्राणी, एक नवजात शिशु की तरह रोता है।
प्राणी व प्रकृति इन दोनों का, परमात्मा की सभा में न्याय होता है।
जब यौवन का सावन बिछड़ जाना है, तो फिर यह पाखण्ड कैसा?
हरे-भरे पत्तों ने शाख से झड़ जाना है, फिर सबमें है घमण्ड कैसा?
अन्त समय में हर बात यूॅं दोहराए, मानो मनुष्य एक रट्टू तोता है।
प्राणी व प्रकृति इन दोनों का, परमात्मा की सभा में न्याय होता है।