न्याय मिले हर अबला को
?न्याय मिले हर अबला को?
कैसा वहसीपन छाया है मानव के मनमंदिर मैं,,
लहरों मैं उन्माद भरा आज के शांत समंदर मैं,,
जित देखो शैतानी दिखती बेटी बहिन असहज है,,
नोंचे खींचे कैसा दैत्य जाग रहा इंसानों के अंदर मैं,,
सब तरफ मुँह खोले बैठे है क्या गली चौराहे नुक्कड़,,
रोज बलात्कारी निकल रहे है क्या हो इस बबंडर मैं,,
उम्र शर्म लिहाज का मर्दन खुद करके मर्द बनोंगे कैसे,,
गुड़िया तोड़ खुद की गुड़िया से कैसे कहोगे सुंदर मैं,,
धर्म जाति जो देखे मुजरिम मैं उनको बख्सा न जाये,,
पत्थर बाँध कमर मैं डुबादो मनु ऐसे को बीच समुंदर मैं,,
मानक लाल मनु?✍️