न्याय पथिक
न्याय के पंथ पर चलना ,
होता वृहत् भयावह है ,
सहस्रों में एक मनुज ,
गढ़ता न्याय पथिक है।
न्याय के पंथ में होती ,
पग – पग पर विपदाऍं है ,
विपदाओं से लड़कर ही ,
गढ़ता न्याय पथिक है ।
मंजिल लहने का उन्माद हो ,
अग्रसर रहता पंथ पर सदैव ,
अड़ंगाओं को पार करता जो ,
वही गढ़ता न्याय पथिक।
दुखों का म्लानि सहता ,
स्वजनों से वियोगता रहता ,
फिर भी ना लड़खड़ाता ,
कृत्य पंथ पर चलते रहता ,
वही मनुज अग्रे चल ,
गढ़ता न्याय पथिक है।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या