न्याय अन्याय
सूर्पनखा अपमान ते, मन उपजा आघात।
रावण डाली कुदृष्टि जब, मात हुआ अपमान।
बंदी रही लंका में माता, 435 दिन ससम्मान।
रहीं कूस रक्षण में, फिर भी खोया मान।
रावण का संहार हुआ, विभीषण को था मान।
चरित्र सम्मानित रावण, विभिषण नाम अपमान।
उसी धरा के मूल, न कर सकत अन्याय।
शीश को धण से मुक्त कर, लिख देते हम न्याय।
श्याम सांवरा…