नौकरी
आज 2 साल के बाद हमारा विद्यालय खुला हुआ है। मैं बच्चों के नामांकन में लगी हुई थी तभी तभी 60- 65 साल के व्यक्ति 3 बच्चों का नामांकन कराने के लिए विद्यालय में लेकर के आए । मैंने उनका नामांकन कर दिया और बातों-बातों में पता चला है कि वह मेरे पापा के सहपाठी रह चुके हैं और उनका नाम संपत है ।वे मेरे बारे में भी जानते हैं जैसे- मैं पहले शिक्षामित्र थी बाद में सहायक अध्यापक हो गयी।
उन्होंने बताया कि उनकी बहू भी शिक्षामित्र थी! यह कहते हुए उनके उनकी आंखों में आंसू भर गए मेरे बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने बताना शुरू किया।
बात लगभग 25 साल पहले की है मेरा बेटा विनोद और मेरी बहू रानी दोनों एक ही साथ कक्षा आठ में पढ़े थे। फिर बेटे ने हाई स्कूल किया। हाई स्कूल पास करने के बाद से उसने पढ़ाई छोड़ दी। मैं खुद ग्रेजुएट हूं पर मुझे नौकरी ना मिली यह बात मेरे बेटे को लगी कि पिताजी को नौकरी नहीं मिली क्या होगा ज्यादा पढ़कर खैर।
मेरी बहू इंटर पास करके मेरे घर ब्याह कर आई मैंने उसे ग्रेजुएट कराया और 2004 में शिक्षा मित्र की नौकरी मिल गई नौकरी मिलने के कुछ दिनों बाद बहू को घमंड होने लगा। धीरे- धीरे उसके तेवर बदलने लगे। उसे लगने लगा कि मेरा पति कम पढ़ा- लिखा छोटा काम करता है और मैं एक अध्यापिका हूं ।वह लड़ाई झगड़ा कर अपने मायके में जाकर रहने लगी और वहीं से विद्यालय आने जाने लगी । सबके लाख समझाने के बाद भी बहू वापस आने को तैयार न हुई। मैं उदास घर आया और रोता रहा सोचता रहा कि मेरी बेटी नहीं है मैंने अपने बहू को बेटी की तरह समझ कर के उसे पढ़ाया । जब वह शिक्षामित्र की ट्रेनिंग कर रही थी रामपुर कारखाना (देवरिया) डायट पर तब वह फाइनल इम्तिहान में फेल हो गई थी ।मैं खुद जाकर डाइट में बैठकर उसका कापी लिखा तब जाकर वह पास हुई।
बात आगे बढ़ गई अंत में हार कर के पंचायत बुलाई गई और तलाक हो गया बहू का । मैं भरी सभा में रोता रहा और मुझे देखकर पंचों की भी आंखें डबडबा गई थी।
यह कहते हुए उनकी आंखों से आंसू बहने लगे मेरी आंखों में भी आंसू आ गए। मेरी उत्सुकता और बढ़ी।
उन्होंने बताया कि अर्जुनहा डायट (कुशीनगर)पर जाकर के
बालिका समन्वयक से उसका शिक्षामित्र पद निरस्त करा दिया। उस समय नियम था कि शिक्षामित्र उसी ग्राम सभा का निवासी होना चाहिए बहू का तलाक हो जाने से उसकी ससुराल की निवासी ख़त्म हो चुकी थी। निवासी ना होने की स्थिति में प्रधान और सचिव द्वारा उसका नवीनीकरण नहीं होता था।
उन्होंने अपने बेटे की दूसरी शादी करवा दी जिसके बच्चों का नामांकन मैंने किया है अपने स्कूल में।
बेटा की शादी हो जाने के बाद पहली बहू निवेदन करने लगी फिर वापस आने के लिए मैंने साफ मना कर दिया।
उसकी शादी दूसरे जगह हो गई जिसके यहां थोड़ी सी जमीन थी और उसका पति भयंकर शराबी रिक्शा चालक था जो कि एक्सीडेंट में अपंग हो गया है ।
आज की तारीख वह दूसरों के खेत में मजदूरी करती है तब जाके शाम का खाना बनता है ।
ये सब सुनकर मैं उदास हो गई मेरा मन शिक्षण कार्य में न लगा । मैं सोचती रही कि मनुष्य कितना स्वार्थी है दूसरों के बारे में जरा भी नहीं सोचना चाहता । खुदा को ये बिल्कुल पसंद नहीं यह बात हम इंसान बहुत अच्छे से जानते हैं। हम अपनों का नुकसान तो करते ही हैं अपना भी नुकसान कर बैठते हैं।
“मालिक कहते हैं कि तू नीचे वाले पर रहम कर मैं तुझ पर रहम करूंगा।”
नूर फातिमा खातून”नूरी “(शिक्षिका)
जिला- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश