नैन
नैन बड़े पागल बनकर जब
इधर-उधर मंडराते हैं,
सुध प्यारी तब लेकर मन ही
राह नई दिखलाते हैं।
नैन-नैन से बात बढ़ने पर
पाँव कहाँ रुक पाते हैं,
जिम्मेदारी का बोझ तब आकर
दूर के ढोल सुहावने बतलाते हैं।
नटखट नैन से होती शरारत
तब शोर जग मे हो जाती हैं,
राधा-कृष्ण का प्रेम मिलन
अब भविष्य उज्ज्वल कर जाती हैं।
नैन नवल की शैतानी पर
विश्वास किया ना जाता हैं,
टूटे भरोशा एक बार फिर
नैन से नैन छुपाते हैं।
उनकी नैन की काली काजल
चमक-दमक बिखराती हैं
याद अगले पल उनकी आने से
नयन नीर बह जाते हैं।