नैन द्वार अधखुले छोड़कर
कैसे कोई जा सकता है, अपनों से यूँ मुंह मोड़कर।
सँगदिल बनकर पत्थर बनकर,नाज़ुक सा यह हृदय तोड़कर।
अब भी क्या उम्मीद बची है, लौट पुनः तुम आओगी क्या-
क्या मैं अब भी करूँ प्रतीक्षा, नैन द्वार अधखुले छोड़कर।
कैसे कोई जा सकता है, अपनों से यूँ मुंह मोड़कर।
सँगदिल बनकर पत्थर बनकर,नाज़ुक सा यह हृदय तोड़कर।
अब भी क्या उम्मीद बची है, लौट पुनः तुम आओगी क्या-
क्या मैं अब भी करूँ प्रतीक्षा, नैन द्वार अधखुले छोड़कर।