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23 Jun 2021 · 1 min read

नैनों में चितवन

नैनों में चितवन निखरे
कपोलों में उपवन खिले
दामिनि सा है स्मित हास्य
बदन पर है दुरीय लाज

विचर कर मन बीथियों में
गुँजित हो सिसकियों में
प्राणों में भरते हो आह्लाद
पर पास क्यूं न हो आज

छन कल्प जैसा लगने लगा
श्वांस अग्नि बन दहकने लगा
सूनी सूनी मेरी आहों में
अब कोई न सजता साज

मानस भूमि होती बंजर
प्रीत भी हो रही है खंजर
रूदन करती है ये रूहें
फिर भी मुहब्बत पर है नाज

Language: Hindi
80 Likes · 4 Comments · 631 Views
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