नैनों की बरसात
वर्षा भी धोती है , घाव जन मन के,
भाव भी भींग, जाते तन बदन के।
विरह प्यार दर्द के , भाव दिखाती ,
धरा पे करे ख़ुशहाली, जन जन के।।
पलती जो तनुजा ,धात्री झलक़ों पर,
रहती जो तात , वक्ष फलकों पर।
बेला बिदाई में, क्रंदन करें सब,
होती है बरसात, पितृ पलकों पर।।
जिसने त्यागा,अपना तन वतन पर,
गवाँ दी समग्र ,रक्षा में चमन पर।
रोती तब मईया , रोते गाँव भईया,
होती तब बरसा, तिरंगे कफन पर।।
दिल की नैया , जब डगमगाए,
आस प्रेयसी की, जब लगे सताये।
नैनों में निंदिया ,और ना आये चैना,
निशा संग बरसात, तकिया भिंगोये।।
चुराया दिल जिसने, आंखों में बसकर,
बिताये थे लम्हें , मीठी बातों में हंसकर।
दगा दर्दें दिल, संग जीना है मरना,
तब होती है वर्षा, तन्हाई पकड़ कर।।
जब व्याकुल होअचला, रवि के तपन से,
तब घनश्याम देखें, ऊपर से नयन से।
तब बेवस मही की , विवसता मिटाने,
होती है बरसात, नभ से गगन से।।
श्रृंगार जब, छिनता है इला के,
कट जाते तरु , जब अचला के।
वीरान बनकर के, रोती है धरती,
बरसात होती जैसे, नैना अबला के।।
हवा हुई गंदी, पानी हुआ गंदा,
छाया बिन मरता, बेमौत परिन्दा।
तब नैनो से बरसात, होती धरा की,
मानवता मरती लगा, फांसी का फंदा।।
लगते रहे पेड़, मिले प्यार की सौगात,
आदमी समझे , मानवता की औकात।
दिल के आँशू ,बने प्यार के झरने,
खुशियों वाली हो, नैनों की बरसात।।
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