नैना हैं अभिराम तुम्हारे
शृंगार रस……??
नैना हैं अभिराम तुम्हारे, जुल्फें नागिन जैसी है
चांद गगन में जैसे चमके, तू धरा पर वैसी है
तू है प्रिये! चन्द्रमणि सी, मैं लौह कनक अभिरंजन हूँ
तू कथा की शब्द स्वरूपा, मैं उसका अभिव्यजंन हूँ
हैं दंत कलेवर पारस जैसे,तन संगमरमर सा उज्ज्वल है
हस दे तू एक बार जरा तो, हो जाता मन चंचल है
प्रिये! सुबह की ओस लगे तू, मैं कोहरा धूंध समान
तू रागिनी है पूनम की, मुझे बस तपता वासर मान
कैसे सुधा पान करूँ प्रीत का,हृदय मेरा कमजोर
मैं दूर खड़े बस तुझे निहारूं, जैसे चांद चकोर
गर तेरे भी उर में लागै, कुछ होता प्रीत का भाव
तो मिलन अब कर ले प्रिये! ज्यों हो जाए सम्भाव
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14/12/2019