” नैना हुए रतनार “
विधा : गीत (गीता छंद)
मापनी : 2212 2212 2212 221
गीत
लज्जावनत रजनी चली , अब भोर है इस पार .
कैसे करे वह सामना , नैना हुए रतनार .
छाई हुई नभ पर उषा , आकाश है रक्ताभ .
दिनकर चढ़े रथ , जोश भर , ले रश्मियाँ स्वर्णाभ .
कलरव हुआ खग वृन्द का , स्वागत हुआ साभार .
लज्जावनत रजनी चली , अब भोर है इस पार .
खिलते हुए उपवन सभी , बिखरी हुई है गंध .
मिलना हुआ है वायु से , तो हो रहे अनुबंध .
है जागरण , न्यौते दिवस , कर प्रेरणा संचार .
लज्जावनत रजनी चली , अब भोर है इस पार .
जागी हुई लागे अवनि , हैं साधने जो लक्ष्य .
सम्मुख खड़े हैं नैन के , अभिराम से कुछ दृश्य .
जन जन चला नव खोज है , वह तय करे आधार .
लज्जावनत रजनी चली , अब भोर है इस पार .
बाजी लगी है कर्म की , उपलब्धियों की दौड़ .
राहें रही सबकी पृथक , फिर भी मची है हौड़ .
हैं लालसाएं फिर जगी , करने चले साकार .
लज्जावनत रजनी चली , अब भोर है इस पार .
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )