नैतिक मू्ल्य
नैतिक मूल्य रहे कहाँ इन्सानों में
मानव भटका स्वार्थ के तानोंबानों में।
आदर्शहीन,अवसाद पूर्णजीवनसब जीते,
कुकृत्य और हिंसा का गरल सब पीते ।
रक्षक ही आज भक्षक बना है,
आदर्शहीन देश का शिक्षक बना है।
कौन सिखलायेगा नैतिकता किसी को,
धन कमाने से फुर्सत नहीं पितु-मात ही को।
शिक्षा-प्रणाली करती सिर्फ बौध्दिक विकास,
खो रहेअध्यात्म,होते नैतिक मूल्य ह्रास ।
करबध्द निवेदन मेरा मां’ओं से ………
विष-बेल नहीं संस्कारित संतान बनायें,
बने आचरण उच्च ऐसा पाठ पढायें ।
पतन के नर्तन से मिले राष्ट्र को त्राण,
नैतिक मूल्यों के बिना मानव पशु समान।
———-राजश्री