नेह के बादल कहते जाओ अब कब फिर से आना होगा।
मित्रों हमारे उत्तर प्रदेश , बिहार से लाखों लाख लोग पैसे कमाने के लिए प्रदेश जाते हैं। चार , छह , आठ महीने पश्चात जब कुछ रुपये पैसे एकत्रित हो जाते हैं तो लोग बाग अपने घर परिवार में वापस आ जाते हैं। लेकिन वापस जाते समय उनकी प्रियतमा का क्या हाल होता है ये या तो उनको या उनकी प्रियतमा को ही पता रहता है। मैंने उस समय की प्रियतमा की मानासिक स्थिति को शब्दों में पिरो कर आपके सम्मुख रखने का प्रयास किया है। आप लोगों की प्रतिक्रिया की राह देखता आपका अपना कुमारकलहन्स।
नेह के बादल कहते जाओ अब कब फिर से आना होगा।
संचय जितना कर पाए हैं उतने पर ही प्राण जिएंगे,
प्यास सताएगी घट सी जब बून्द बून्द यह होठ पियेंगे,
सूने जीवन के अम्बर को देखेंगी पनियायी आंखे,
बीते और बचे दिवसों को हम तो बारंबार गिनेंगे,
छठे छमाहे का है वादा यह तो तुम्हे निभाना होगा,
नेह के बादल कहते जाओ अब कब फिर से आना होगा।
प्रवासी हो तुम्हे बांधने की इच्छा क्यों में में लाएं,
इच्छाओं पर वश किसका है चाहे जितना हम समझाएं,
इतनी सी शंका है मन में टूट न जाये आस का प्याला,
लौट के आवो जब भी पाओ स्वागत में बांहे फैलाये,
कठिन भले हो प्रेम की ख़ातिर यह व्रत हमें उठाना होगा,
नेह के बादल कहते जाओ अब कब फिर से आना होगा।
कर्तव्यों से बंधे हुए हो कंधों पर है बोझ तुम्हारे,
अनुनय करती प्रेम की पीड़ा जिम्मेदारी तुम्हे पुकारे,
दूर देश जाकर जल लाकर कितनो की है प्यास बुझाना,
इस दुविधा में भी श्रम का व्रत चलता रहता सांझ सकारे,
तुमको कैसे कहे निर्दयी जिसने भी यह जाना होगा,
नेह के बादल कहते जाओ अब कब फिर से आना होगा।