नेह की पीड़ा
जब गमन तुम्हारा होना तय था
क्यों गोपी में नेह जगाया था ,
कान्हा तुमने नेह की पीड़ा का ,
क्या मर्म कभी न पाया था ।
इस पीड़ा का निर्मोही कान्हा
अहसास यदि तुम कर जाते ,
नहीं विरह – अग्नि में हमको
गोकुल छोड़ गमन कर पाते ।
तुम क्या जानो नेह की पीड़ा
दुख कितना हमको देती है ,
निशदिन नितक्षण छवि तुम्हारी
ह्रदय में समायी रहती है ।
डॉ रीता
आयानगर,नई दिल्ली ।