नेह का भाव
नैन तुमसे मिले जब, अधर सिल गए,
मूक वाणी हुई दिल धड़कनें लगा |
शून्यता थी भरी इस हृदय में शुभे !
घोर तम ने मुझे है डराया बहुत |
बाग में फूल कितने खिले हैं मगर,
कंटकों ने मुझे है सताया बहुत |
दृष्टि तुम पर पड़ी बावरा मन हुआ,
नेह का भाव उर में उमड़ने लगा ||
मूक वाणी हुई———-
सौम्य मनमोहिनी छवि तुम्हारी प्रिये,
सूर की भाँति केवल निहारूँ तुम्हें |
प्रेम अध्याय की राधिका तुम बनो,
कृष्ण बनकर सदा मैं पुकारूँ तुम्हें |
रूप तेरा जगत में निराला बड़ा,
देख तुझको प्रिये ! मैं बहकनें लगा ||
मूक वाणी हुई————
हर्ष भरकर हरो जिन्दगी की व्यथा,
पतझड़ों को प्रिये ! आज मधुमास कर |
मैं सजाता रहूँ स्वप्न सुन्दर सदा,
प्राणिके ! प्रीति का नित्य आभास कर |
छोड़ मुझको कभी दूर जाना नहीं,
उर जगा भाव “अरविन्द” कहने लगा ||
मूक वाणी हुई—————
✍️अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०