नेपाल भूकंप त्रासदी
धरती काँपी, अम्बर डोला,
पल-भर में हाहाकार मचा।
भूमण्डल सारा काँप गया,
मानो अम्बर भी निर्द्वन्द हँसा।
चल पड़ी प्रलय की वह आँधी,
मानव का ह्रदय डोल गया।
दिन के भरे उजाले में मौत,
मौत का दरवाजा खोल गया।
भागो-भागो के नारे से,
लोग जान बचाने भाग पड़े।
माँ-बाप जिनके मर गए वहाँ,
वह बच्चे किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े।
चहुँओर तबाही फैल गई,
टूटे पुल, मंदिर और मकान।
काल ने अपना मुँह खोल दिया,
करने लगा वो रक्तपान।
पल भर में बिछ गई लाशें,
ईश्वर ने ऐसा कृत्य किया,
हर कोई फिर रह गया दंग,
मौत ने ऐसा नृत्य किया।
“सन् 2015 में नेपाल में आए भूकंप की घटना को लेकर रचित यह मेरी “प्रथम रचना” है”