नेतृत्व
भूख अगर परमार्थ की है, तो अर्थ समझ में आता है।
यहां तो कुछ पद तृष्णा में, कुछ को पैसों से नाता है।।
चाटुकार क्या कर पाएंगे, राष्ट्र समर्पित यज्ञ हवन।
नेतृत्व गर बौना हो तो, कौन करेगा आहुत तनमन।।
साठ साल की उम्र गवां दी, जिसने चौकीदारी में।
उसके पास बचा ही क्या है, वतन की पहरेदारी में।।
नव युवकों को प्रेरणा देगें, जो जीवन भर थे पिंजड़ों में।
जेल नहीं ये थे समाज में, गिनती इनकी थी हिंजडो में।।
प्रेरित कर देता है सूरज, नए प्रभात के होने से।
उसकी ऊर्जा स्वयं जगाती, हर जीवों को सोने से।।
है यदि ऊर्जा आत्मबली हो, गौरवशाली कृत्य करें।
हो बलिदानी भाव भरा जो, केवल वह नेतृत्व करें।।
धन अर्जन है ध्येय अगर, तो धर्म को मत बदनाम करो।
भामाशाह धर्म है हिंदू, छल प्रपंच का क्यों काम करो।।
जय हिंद