नेतृत्व में नैसर्गिक गुणों की विधा !
हम लोकतंत्र में जीवन जीने वाले हैं लोग,
हमारे चुने हुए ही हमारे नेता कहलाते हैं,
यह परिक्षा देने आते हैं वह,
और जब चुन लिए जाते हैं,
तो हमारे ही अगुवा कहलाते हैं वह!
हमने देखे हैं,
अपने चुने हुए प्रतिनिधि,
प्रधान से लेकर विधायक और सांसद तक,
अपने अपने तरीके से,
लोगों के साथ उनके सरोकारों से जुड़ने,
या,
उन्हें टरकाने में महारत दिखाते लोग!
यह कह कर कुछ आते हैं,
करने कुछ और लग जाते हैं,
कथनी और करनी में अंतर होता है भारी,
चुनने वाले रह जाते हैं लाचार,
यह जतलाते हैं अपनी होशियारी!
ऐसा ही कुछ हमने तब देखा,
जब बोफोर्स के नाम पर जीत कर आए,
वी पी सिंह ने बोफोर्स से ध्यान भटकाने को,
मंडल आयोग की सिफारिशों को आगे बढ़ाया,
कांग्रेस को रोकने के लिए ,तब
भाजपा ने बी पी सिंह से था हाथ मिलाया,
एक ओर साम्यवादी थे तो दूसरी ओर भाजपा,
बीच में फंसे हुए थे बी पी सिंह ,जिनके सिर पर था ताज सजा,
मोरारजी भाई से लेकर, चरण सिंह व, चन्द्र शेखर तक,
देवेगौड़ा से लेकर गुजराल तक,
आए और गए,
कोई छाप नहीं छोड़ गए!
कभी कभी संयोग से मिल जाती है सत्ता,
घटते हैं घटना चक्र अचानक से,
और उमड़ जाती है दयालुता,
ऐसा ही कुछ तब हुआ,
जब संजय ने राजनीति में उभरना शुरू किया,
लेकिन एक दुर्घटना में चल बसा,
मां को संबल देने को,
तब राजीव ने कदम धरा,
अभी जख्म भरा भी न था,
कि तभी इंदिरा पर प्राण घातक हमला हुआ,
इंदिरा तो बच नहीं पाई,
किन्तु सत्ता छींका तोड़ कर राजीव के हाथ आई,
सब कुछ अचानक से ही हुआ,
यह तो राजनीति का प्रशिक्षु ही था,
सत्ता के दलालों से आ घिरा,
और तब ऐसा कुछ घोटाला घटा,
जो इन्हें लेकर ले डुबा ,
क्योंकि नेतृत्व सहानुभूति की खैरात में था मिला!
नरसिम्हा राव ने गुजारे पांच साल,
कुछ अच्छे किए काम, कुछ में किया गोल माल,
कुल मिलाकर यह भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाए,
मौनी बाबा के रूप में नाम धराए,
इनका भी जाना हुआ,
और अटल जी का आना हुआ,
अटल जी ने टुकड़ों में शासन किया,
तेरह दिन,तेरह माह, और फिर पांच साल,
गैर कांग्रेसी सरकार ने पहली बार पुरा किया कार्यकाल,
काम भी हुआ नाम भी हुआ,
परमाणु पोखरण से लेकर कारगिल तक,
खुब झण्डे गाड़ दिए,
पर थोड़ी बहुत महंगाई ने भी,
हाथ पैर ढ़ीले किए!
महंगाई बढ़ी भी और घटी भी,
पर इतनी बेचैनी ना पैदा हुई,
परमाणु पोखरण से कारगिल विजय तक,
खुब वाहवाही हुई!
देश का गौरव बढ़ाया,
शान्ति का पैगाम सुनाया,
नेहरु,शास्त्री जी व इन्दिरा जैसा सम्मान पाया!
मन मोहन सिंह ने भी सत्ता संभाली,
एक नही दो पंच वर्षीय काट डाली,
लेकिन अपने नेतृत्व की छाप नहीं छोड़ पाए,
अच्छे अर्थ शास्त्री तो कहलाए,
किन्तु अच्छे प्रधानमंत्री न बन पाए,
घोटालों से दामन तार तार हुआ,
पार्टी का भी बंटाधार हुआ!
गिरी जो साख तो वह फिर से न बन पाई,
न्यूनतम अंकों पर लोकसभा में सीमट आई!
न ई उम्मीदों के संग नरेंद्र भाई मोदी जी आए,
देश में वह ऐसे छाए,
कोई सामने नजर ना आए,
ना ही कोई टिक ही पाए,
पांच साल का सफलता पूर्वक संचालन किया,
फिर पांच साल के लिए जनादेश ले लिया,
किन्तु इस बार उनकी चाल बदल गई,
किसानों के संग राढ छिड़ गई,
दोनों ही पक्ष अड़ गए हैं,
धर्म संकट में जैसे सबके सब पड़ गये हैं,
मंहगाई से छवि धुंधलाने लगी है,
व्यक्तित्व में उनके कमी आने लगी है,
वह प्रधानमंत्री बन कर राष्ट्र नेता बने हैं,
अब उनसे कौन कहे वह सिर्फ पार्टी भर के नेता नहीं रहे हैं,
यह वह समय है जब वह राष्ट्रीय नेता के रूप में छवि को संवारें,
जवाहर, शास्त्री जी, इन्दिरा,व अटल जी की विरासत को आगे बढ़ाएं!
नेतृत्व के नैसर्गिक गुणों को अपनाएं,
नैसर्गिक नेता बन कर दिखाएं!!
ंंंंं