नेता
नेता
आहत भावनाओं के बोल बोलते हैं
बिगड़े हूऐ आचरण करते हैं
फिर भी संन्यासी बगुला भगत बनते हैं
पकड़े गऐ तो भी, दूधिया धुला करते हैं
मुँह में राम , बगल में छुरी रखना हैं
हमें सचेत रहकर संविधान की साख बचाना हैं
हर – पल जो अपने थे ,
भेद उनके अब खुले हैं
देखन में बहुत ही गरीब गाय बनते हैं
क्या करें मौन है हम ,
ये बोलते हैं , कौडियों में तोलना हैं
हम तो लोकतंत्र हैं ,
इनका तो असंतुलन सदैव रहना हैं
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– राजू गजभिये