नेता बनाम नेताजी(व्यंग्य)
ऊंट किस करवट बैठेगा ये बताना है आसान ।
बंद मुठ्ठी में क्या है तुम लगा सकते अनुमान ।।
पर क्या होगा नेता की अगली पार्टी का नाम ।
ये बताना है दुनिया का सबसे मुश्किल काम ।।
ये नेता तो मौका पाते ही बदल लेता है पाला ।
मांगता है वोट चाहे गले डालो जूतों की माला ।।
दल बदलू आया-गया तो आया राम,गया राम ।
और नेता कुर्सी पे ही पलट गया तो पलटूराम ।।
इनका रंग बदलते देख,गिरगिट भी मॉगे पानी ।
इस नेता का पहले ही खून हो चुका है पानी ।।
रंग बदलने के खेल में ये चढ़ा ले पानी का रंग ।
आज इसके,कल उसके, परसो किसी के संग ।।
दाँव-पेंच,तिकड़मबाजी ये कही ना है फँसता ।
दूसरों को फँसा कर मुँह छुपा कर है हॅसता ।।
विरोधियों पर इल्जाम आरोप तुरन्त देता दाग ।
खुद फँसे तो सॉरी बोल तुरन्त ही जाता भाग ।।
नेता की जाति-मजहब पर है थोड़ी सी पकड़ ।
इसी बात पर पार्टी ऑफिस में चलता अकड़ ।।
पता नही भोली जनता क्यों इस पर हैं लट्टू ।
फिर-फिर चुन लेती हैं निठल्ला निरा निखट्टू ।।
जो जनसेवा, विकास की हवा बहाता ताजी ।
वो ही आदर से बन सकता नेता से नेताजी ।।
सच्चा नेताजी लेता व्रत जनहित,देशहित का ।
लाठी बनता दुर्बल,गरीब,असहाय वंचित का ।।
आओ जागो नेताजी में बदल दें ये सब नेता ।
देश-प्रदेश,जनता,लोकतंत्र को बना दें विजेता ।।
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मौलिक एंव स्वरचित : रचना संख्या-१८
जीवनसवारो,जून २०२३.