नेता जी “गीतिका”
विधा -गीतिका
रस -व्यंग
शीर्षक – #नेता जी #
चोरी करके शर्म करें ना, करते खूब कमाई भी।।
सच्चे नेता जी कहलाते, करते जोर ढिठाई भी।(१)
तोल-मोल के शब्द नहीं है,जो बोलें बिन समझे ही,
बिना समझ के देते भाषण,होती जगत हॅसाई भी।(२)
प्यार दिखावा भाव दिखावा,जो दिखलाते जनता को,
ऐसे नेता जी ही सच में,खाते खीर मलाई भी।।(३)
कम करके बहुधा दिखलाना, करते सतत सदा प्रचार,
वही आज के सच्चे नेता,करते नहीं भलाई भी।(४)
खुद, खुद पर जूते फिंकवाकर, लड़ते हैं जो नेता जी
सिम्पेथी लेने की खातिर,खाते खूब पिटाई भी।(५)