नेता जी / कुर्सी
कुर्सी है मां ,कुर्सी है पिता ,
और कुर्सी ही भाई बंधु ।
कुर्सी ही धर्म कर्म ,
कुर्सी ही ईमान ,
और कुर्सी ही है सुख और आनंद ,
की उमड़ता हुआ सिंधु ।
कुर्सी ही जीवन ,
कुर्सी ही मरण ,
और कुर्सी ही है अकूत महत्वाकांक्षाओं का ,
चरम बिंदु ।
कुर्सी ही पहचान है ,
कुर्सी ही प्राण है ,
कुर्सी के बिना हमारी क्या हैसियत,
कुर्सी के बिना तो हम शून्य है बंधु !