नेक काम
कई संस्थानों ने परिंदों को पानी पिलाने का बीड़ा उठाया था । कुम्हारों को रोजगार मिला । बांटने के लिए मिट्टी के बर्तन बने। अखबारों में संस्था प्रमुखों के बर्तन बाँटते हुए फ़ोटो खिंचे । बहुत नाम हुआ प्रतिष्ठा बढ़ी ।
उधर परिंदे हैरान थे । उन्हें किस बात की दावत मिल रही थी। प्रसन्न थे अब बैठे बिठाए दाना पानी मिलेगा । भूखा प्यासा नही मरना पड़ेगा ।
पर ये कहानी ज्यादा नहीं चली।जैसे ही योजना बन्द हुई। न तो किसी ने दाना डाला और न ही पानी । लोगों की तिजोरी तो भर गईं पर परिंदों का पेट खाली।
और छत पर उन बर्तनों में बस काई लगा बरसाती पानी है ….
19-09-2018
डॉ अर्चना गुप्ता