नेकी कर दरिया में डाल
नेकी कर दरिया में डाल
नमस्ते सर,
हरीश ने सिर उठाकर देखा तो एक अधेड़ सा व्यक्ति जो देखने में उद्विग्न सा लग रहा था, हाथ जोड़े खड़ा था.
नमस्ते, कहिए क्या बात है.
सर मेरा नाम मनोज है, मैं मुरादाबाद में रहता हूँ.
मैं यहाँ किसी काम के सिलसिले में आया था, बाजार में किसी ने मेरा पर्स गायब कर दिया. मेरे पास कोई पैसा नहीं रहा. बहुत हिम्मत करके आपसे अनुरोध कर रहा हूँ. कृपया मुझे पच्चीस रुपये उधार दे दीजिये, मैं मुरादाबाद पहुँचते ही आपके पैसे लौटा दूंगा.
हरीश ने उसे गौर से देखा, पहले उसे लगा यह उसकी ठगने की कला है, लेकिन उसके हाव भाव, बात करने का लहजा तथा पहनावे से वह एकदम सज्जन व्यक्ति लगा.
मुरादाबाद में कहाँ रहते हो, इस पर उसने अपना मुरादाबाद का पूरा पता लिखवा दिया, तथा कहा :
सर, मैं बहुत अच्छी फैमिली से हूँ.
यहाँ स्टाफ से मुझे पता चला कि आप भी मुरादाबाद के हैं, इसीलिये हिम्मत करके आपसे कहा.
हरीश ने दो पल सोचा फिर उसे पच्चीस रुपए दे दिए. मुरादाबाद का टिकट उन्नीस रुपये का आता था,
लो आप कुछ खा पी भी लेना.
थैक्यू सर, में मुरादाबाद पहुँचते ही आपके पैसे लौटा दूँगा.
दो तीन दिन बीत गए, धीरे धीरे दस दिन बीत गए, कोई पैसा न आया.
हरीश ने जेब में उसके पते की पर्ची टटोली, लेकिन वह पर्ची भी नहीं मिली.
चलो पच्चीस रुपए ही गए. बड़ा चालाक आदमी था. इतनी मासूमियत, से चूना लगा गया, हरीश बुदबुदाया,
चल यार उसका करना उसके साथ, हमने तो जरुरतमंद समझ कर ही मदद की थी. एक आदमी की वजह से असली जरूरतमंद की भी पहचान नहीं हो पाती.
छड यार,
नेकी कर दरिया में डाल.
धीरे धीरे एक दो महीने बीत गए.
हरीश इस प्रकरण को भूल चुका था. वह दफ्तर में अपने काम में लगा था, कि अचानक आवाज आई
नमस्ते सर
उसने चौंक कर देखा तो मनोज खड़ा मुस्कुरा रहा था. सर क्षमा कीजिए, उस दिन आपने अपना नाम लिख कर दिया था वह कागज कहीं गुम हो गया था, इसलिए पैसे नहीं भिजवा पाया.
आज मुझे फिर यहाँ काम था. मैं सबसे पहले आपका उधार लौटाने चला आया. उस दिन आपने मेरी बहुत मदद की वरना आजकल कौन किसी की मदद करता है, यह कहकर उसने पच्चीस रुपये निकाल कर हरीश को दे दिए. हरीश ने उठ कर उसे गले लगाया. उसे मन ही मन स्वयं पर पश्चाताप हो रहा था, कि व्यर्थ में एक भले आदमी पर शक किया.
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद