*नृप दशरथ चिंता में आए (कुछ चौपाइयॉं)*
नृप दशरथ चिंता में आए (कुछ चौपाइयॉं)
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1
नृप दशरथ चिंता में आए।
सिर के बाल श्वेत जब पाए।।
सोचा राजा राम बनाऊॅं ।
मुक्त भार से यों हो जाऊॅं ।।
2
मुनि वशिष्ठ को बात बताई ।
हर्षित दशा राजमुनि पाई ।।
शुभ मुहूर्त की देर न करना।
मुनि ने कहा तीव्र पग धरना ।।
3
सब तीरथ के जल मॅंगवाए ।
भॉंति-भॉंति के साज सजाए।।
नगर अयोध्या खुशियॉं छाईं।
किंतु राम के मन कब भाईं।।
4
कहा चार हैं जब हम भ्राता ।
बड़ा एक ही पद क्यों पाता ।।
कुटिल मंथरा ने विष डाला ।
बीज बैर का मन में पाला ।।
5
कैकेई को पाठ पढ़ाया ।
सगा और सौतेला आया ।।
कहा कुटिल कौशल्या रानी ।
तुम सीधी वह बड़ी सयानी ।।
6
लिखा भाग्य में पद अब दासी।
आजीवन अब सिर्फ उदासी ।।
बात मंथरा की मन भाई ।
हृदय कुटिलता की छवि छाई।।
7
कोप-भवन में रंग दिखाया ।
नृप तब उसे मनाने आया ।।
दो वर मॉंगे बहुत पुराने।
तीर साध कर चले निशाने ।।
8
पुत्र भरत पद राजा पाऍं ।
चौदह बरस राम वन जाऍं ।।
दशा बिना मछली ज्यों पानी ।
नृप ने मृत्यु निकट निज मानी।।
9
किंतु राम ने दुख कब पाया ।
कहा पिता से पद सब माया ।।
वन में मुनिगण बहुत मिलेंगे।
सद्विचार के सुमन खिलेंगे ।।
10
आज्ञा दें मैं वचन निभाऊॅं।
बन सुपुत्र हर्षित वन जाऊॅं ।।
धन्य राम तुम प्रभु अवतारी।
अनासक्त सद्बुद्धि तुम्हारी।।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451