नूर ए हुस्न उसका।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
कलेजा निकाल कर हमने कलम में रख दिया है।
यूं अपने जज्बातों को अल्फाजों में लिख दिया है।।1।।
इश्क का परिंदा है उड़ ही जायेगा ऊंचे महलों से।
कितने हों पहरे, हमने निगहबानों से कह दिया है।।2।।
उनका मुस्तकबिल उनकी अमीरी में संवर गया है।
उनको तो सहारा अपने सायबानो से मिल गया है।।3।।
ना जाने क्यूं तुमको हमको लेकर वहम हो गया है।
तुमने हमको भी अपने गुनहगारों में गिन लिया है।।4।।
हर मुश्किल तेरी कुशा हो जायेगी इस जिंदगी की।
अगर साएमें तू तेरी मां की दुआओं में आ गया है।।5।।
उसके आ जाने से महफिलों का आगाज़ होता है।
नूर ए हुस्न उसका सभी की आंखों में बस गया है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ