नूर ए मुजस्सम सा चेहरा है।
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तूफानों ने मेरा रास्ता रोका तो बहुत।
पर कश्ती मेरी मकसूद ए साहिल को पा गई है।।
क़िस्मत,मुकद्दर इत्तेफ़ाक है जीने में।
मेहनत से हर जिन्दगी अपना मकाम पा गई है।।
नूर ए मुजस्सम सा चेहरा है उसका।
अपने हुस्ने सबाब से वो महफिल में छा गई है।।
बेरूखे से थे हम अपनी जिन्दगी में।
उसकी ज़िद हमको भी मोहब्ब्त सीखा गई है।।
रूहे मोहब्बत हमको भी हो गई थीं।
पर उस की बेवफाई हम को पत्थर बना गई है।।
बरबाद करने को मोहब्बत जगा दो।
कोई भी जिन्दगी इस में ना शिफा पा सकी है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ