नुमाइश बना दी तुने I
दर्द में जीने की आदत हो गई है, मुझे
अब तो रिश्तों को सीने की आदत हो गई मुझे।
ये टुकड़ा है हृदय का जिसे नुमाइश बना दी तुने ।
कैसे जीएगी तुने कहा ,
मेरे होंठ चुप थे।रो रही थी , मैं
पर अंतर्मन बोल उठी
वर्षों के दरम्यान खो चुकी मैं
पर एक पल में सारी पहचान खो चुकी मैं ।
दग्ध हृदय को आज अनुभव कर ली जीवन से,
आज मैंने जीवन में मौन मौत देखा
मौत पर शरीर दग्ध होना है सिर्फ
मेरे दर्द मुस्कराते हैं।
साक्षी भाव जब आते हैं।
द्रष्टा भाव का असर होश में हमें लाते हैं।
मेरे आँख जलते हैं आँसू खो जाने से,
मेरे होंठ बोलते हैं,अपने हृदय से ये कौन सा असर हैं।
अपने हौसले बुलंद नहीं रहा हैं क्या
खुद से खुद बोलते हैं।
मेरे दर्द मुस्कराते हैं।
दर्द में जीने की आदत हो गई है मुझे
अब ……….
_डॉ. सीमा कुमारी,बिहार,भागलपुर,दिनांक-10-4-22की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं