नील गगन
कुण्डलिया
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नील गगन में छा रहे,
धवल मेघ चितचोर ।
करता है दिल आज हम,
चलें साथ उस छोर।।
साथ चलें उस छोर,
जहाँ खग विचरण करते।
काजर की सी रेख,
उड़ानें प्रमुदित भरते।।
‘नवल’ नील पट ओढ़ि,
रूपसी सोचे मन में।
कहे चलो प्रिय आज,
चलें हम नील गगन में।।
– नवीन जोशी ‘नवल’
(स्वरचित एवं मौलिक)