‘नील गगन की छाँव’
नील गगन की छाँव में,
लगा है मेला गाँव में।
लगा भीड़ का रेला है,
कोई नहीं अकेला है।
चर्खी झूला लगा वहाँ,
झूलें बच्चे और जवाँ।
गोल जलेबी घेवर गोल,
लाला ज़रा बढ़ाकर तोल।
चाँद ने ओढ़ा धूप का घूँघट’
तारे भर रहे पानी पनघट।
भानु अश्व पर हुआ सवार,
चमक उठा सारा बाजार।
हम तुम सब भी वहीं चलें,
मित्र सखा से गले मिलें।
खेल खिलौनों की भरमार,
खुशियों का यही है सार।
-गोदाम्बरी नेगी