” नीला”
नीले का है विस्तार वृहद
समझेगा कोई क्या ? अनहद!
अम्बर अनन्त फैला नीला
नीले सागर का उर गीला
अम्बर से झर झर कर बूँदें
सागर की गागर भरती हैं
नीले से हो करके आरंभ
फिर नीले तक ही चलता है
नीले का चक्र निरंतर है
आना ,जाना ,जा कर आना
पाना,खोना ,खो कर पाना
अंतर्निहित कालांतर है
अम्बर नीला ,सागर नीला
अम्बर के उर में बूँदें हैं
सागर की बूँदों में बादल
हद कोई नही,ं बस है अनहद
नीले का है विस्तार वृहद .
अपर्णा थपलियाल”रानू