नीर बिना है नीरस जीवन
शीर्षक – ” नीर बिना है नीरस जीवन ”
बिन पानी नामुमकिन जीवन ।
बंजर धरती…… सूना उपवन ।।
हे अमृत सा ……प्यास बुझाता ।
तभी तो यह …जीवन कहलाता ।।
प्रकृति पर…… सितम ढहाते हैं ।
क्यों ? पानी…….व्यर्थ बहाते हैं ।।
बस पानी – पानी करता जीवन ।
बंजर धरती…….. सूना उपवन ।।
पग -पग ये ……..नहीं मिलता है ।
अब नीर बोतल में…. बिकता है ।।
पूछो उनसे……… क़ीमत इसकी ।
जो मीलों………… पैदल चलते हैं ।।
तपती दुपहरी…… सर पर लेकर ।
बस घड़ों से……….पानी भरते हैं ।।
बिना पानी बस……..सहरा जीवन ।
बंजर धरती …………सूना उपवन ।।
बंजर धरती………… सूना उपवन ।।
© डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम