नीरस कल्पना
प्रथम काव्य रचना –
“नीरस कल्पना” (2006)
हैं नीरस जिंदगी,
मुझपर भी तो तरस।
सुख की वर्षा बनकर
इस मरु में भी बरस।
ना वृक्ष हैं ना डाल हैं
निर्जीव सा हाल हैं।
न सुर हैं न ताल हैं
जिंदगी बेहाल हैं।
जिंदगी मेरी जब
सरस में डूब जायेगी ।
दुःख मुझसे तब
ख़ुद ऊब जायेगी।
सुख मिलेंगें गले से
अधूरे स्वप्न पले से।
नशे में चूर से
भागेंगे दुःख दूर से।
पर क्या यह सच हैं
यह तो एक कल्पना हैं।
मेरे जीवन तरु को
और भी अभी तड़पना हैं।
– तेजस ‘नीरा नंदन’
15 फ़रवरी 2006