नीति प्रकाश : फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख सादी द्वारा लिखित पुस्तक “करीमा” का बलदेव दास चौबे द्वारा ब्रज भाषा में अनुवाद*
नीति प्रकाश : फारसी के प्रसिद्ध कवि शेख सादी द्वारा लिखित पुस्तक “करीमा” का बलदेव दास चौबे द्वारा ब्रज भाषा में अनुवाद
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यह पद्यानुवाद शाहबाद,रामपुर जिला (उत्तर प्रदेश) निवासी श्री बलदेव दास चौबे द्वारा किया गया था। यह पुस्तक बरेली रुहेलखंड लिटरेरी सोसायटी के प्रेस में छपी थी। इस पर सन 1873 ईस्वी अंकित है। शेख सादी 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फारसी कवि रहे हैं। उनकी लिखी हुई” गुलिस्तां “और “बोस्तां” कृतियां बहुत प्रसिद्ध हैं। “करीमा” यद्यपि उतनी प्रसिद्ध कृति नहीं है, लेकिन रामपुर निवासी श्री बलदेव दास चौबे द्वारा ब्रज भाषा में इसका अनुवाद किए जाने से हिंदी भाषी क्षेत्र में इस कृति के महत्व को समझा जा सकता है ।
1873 में रामपुर में नवाब कल्बे अली खाँ का शासन था। नवाब कल्बे अली खाँ स्वयं भी फारसी के एक अच्छे कवि थे उन्होंने फारसी काव्य संग्रह “ताजे फर्खी” लिखा था और उसे समीक्षा के लिए ईरान भेजा था,जहाँ फारसी के विद्वानों ने उसकी भरपूर प्रशंसा भी की थी। अतः रामपुर में साहित्य को बढ़ावा देने की दृष्टि से तथा विशेषकर हिंदी और फारसी के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए रामपुर रियासत में जो कार्य हुए, उसमें एक कार्य श्री बलदेव दास चौबे से नवाब रामपुर द्वारा शेख सादी की पुस्तक “करीमा” का ब्रज भाषा में अनुवाद करने का आग्रह था। कवि बलदेव दास चौबे ने इस आग्रह को स्वीकार किया और बहुत सुंदर रचना लिखी। अनुवाद के लिए पुस्तक के आवरण पर “उल्था “शब्द का प्रयोग किया गया है।
“करीमा” संसार के व्यावहारिक ज्ञान से संबंधित पुस्तक है । इसका विषय दान, दया ,कृपणता, गर्व ,विद्या, मूर्खता, न्याय ,अन्याय ,लोभ, संतोष, धैर्य, वैराग्य, भक्ति, प्रेम आदि विषय हैं। किस प्रकार से एक आदर्श समाज की रचना हो और एक स्वस्थ मनुष्य का निर्माण हो , यही “करीमा” का केंद्रीय विषय है। बलदेव दास चौबे जी ने सभी विषयों पर बहुत उत्कृष्टता से प्रकाश डाला और सही मायने में इसका नाम” नीति प्रकाश” रखा, क्योंकि यह संसार में रहने के लिए नीति का ज्ञान कराने वाली पुस्तक है ।
इस पुस्तक की मुख्य विशेषता यह भी है कि इसमें कवि बलदेव दास चौबे जी ने अपने संबंध में काफी जानकारी दी है । इस पुस्तक में लिखा है कि उनके पूर्वज आगरा के निवासी थे और लूटपाट देखकर वह वहां से शाहबाद क्षेत्र में आकर बस गए थे। आजकल शाहबाद रामपुर जिले की तहसील है। कवि बलदेव दास ने स्पष्ट ही इसकी भौगोलिक स्थिति में बरेली, रामपुर, आगरा और संभल का उल्लेख किया है । रामगंगा का उल्लेख भी है। नवाब कल्बे अली खां के शासनकाल का उल्लेख है । कवि बलदेव दास चौबे जी ने स्पष्ट लिखा है :-
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श्री नवाब साहब सदा राखत ताको मान ।
कही करीमा ग्रंथ की भाषा करो बखान ।।
कह्यो करीमा ग्रंथ यह सादी शेखसुजान ।
भये नगर शीराज में तख्त मुल्क ईरान ।।
बीते वर्ष कहैं तिन्हे छह सौ तीस प्रमान।
कही गुलिस्तां बोस्तां ताही शेख निदान।।
ताको मैं भाषा कियो नाम सुनीति प्रकाश।
जो जाको समुझे पढ़े पावे नीति निवास।। (प्रष्ठ 2 )
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इस प्रकार यह जो पुस्तक में उल्लेख है कि 630 वर्ष पूर्व शेख सादी हुआ करते थे ईरान के शिराज शहर में ,यह पूरी तरह सत्य है क्योंकि शेख सादी का जन्म 13 वीं शताब्दी में ही हुआ था तथा” नीति प्रकाश ” 1873 ईसवी की है।
“नीति प्रकाश “में मध्य में देवनागरी ब्रज भाषा में करीमा का अनुवाद है और दोनों ओर मूल फारसी में लिखा हुआ है।
.बड़े सुंदर दोहे तथा चौपाइयां बलदेव दास चौबे जी ने अपनी पुस्तक में लिखी हैं। उन्होंने पुस्तक में अपना परिचय भारद्वाज गोत्र तथा पितामह का नाम वासुदेव बताया है। दोहों चौपाइयों में उन्होंने लिखा है ,गर्व के संदर्भ में :-
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गर्व न कबहु कीजिए, मानुष को तन पाइ।
रावण से योधा किते , दीने .गर्व गिराइ ।। (पृष्ठ 8 )
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विद्या के संबंध में उनकी पंक्तियाँ हैं:-
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पंडित सब तजि विद्या सेवें।
मूरख विद्या को तजि देवें।।
( प्रष्ठ 9 )
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वैराग्य के संबंध में चौपाई का अंश देखिए:-
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या पाछे मत करे गुमाना ।
क्षण में छूटि जात हैं प्राना ।।
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बहुत राज को गर्व न कीजै।
अगले पिछले नृप लखि लीजै।। (प्रष्ठ 24 )
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शासकीय सहायता के बिना साहित्य का प्रकाशन बहुत कठिन रहता है ।यह अच्छा हुआ कि तत्कालीन नवाब रामपुर ने कवि बलदेव दास चौबे जी को फारसी से हिंदी पद्य अनुवाद के लिए प्रेरित किया और एक अनुपम कृति तैयार हो गई ।
28 प्रष्ठ की इस पुस्तक की फोटो प्रति मुझे श्री बलदेव दास चौबे जी के वंशज आदरणीय श्री राम मोहन चतुर्वेदी जी ने प्रदान की है। राम मोहन चतुर्वेदी जी के पिता श्री राधे मोहन चतुर्वेदी जी अपने समय में रामपुर रियासत के राजकवि के रूप में काव्य – जगत में विख्यात रहे। श्रेष्ठ कथावाचक भी थे। यह भी हमारा सौभाग्य रहा कि हमने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में श्री राम मोहन चतुर्वेदी जी को आमंत्रित करके उनके पिता श्री राधे मोहन चतुर्वेदी जी की आध्यात्मिक कविताओं का पाठ उनके श्रीमुख से सुना। वर्ष 2016 में यह कार्यक्रम हुआ था।