नीड
हे नवल सरल खग तू है अबल
जैसे सर में खिलता है कमल।
कितना मनभावन मनमोहक
प्रकृति के कृति का तू द्योतक।
अभी नयन कपाट खुले ही नहीं
तेरे भाल कपाट खुले ही नहीं
तेरी चीं चीं सुन कर आ जाती
तेरी माता दाना चुगा जाती।।
तेरे नीड में मां आती ही रही
तुझ पर खुशियां लुटाती रही।
नीड हुआ खुशियों का संसार
मिलती जहां खुशियां अपार
जब शक्ति पाई तेरे अशक्त पर
तब उड़ने लगा हर डाली पर
एक दिन ऊंचाई नभ की मैं
नापूंगा निज पर से ही मैं।
हम सब से भी आगे जाना
सीमा से पार चले जाना
तू कुल का नाम बढ़ाएगा
हम सब का मान बढ़ाएगा।
उड़ चला क्षितिज की ओर
मिला जब उसे इस तरह जोर।
उड़ता ही गया, बढ़ता ही गया।
अपनी सीमा से पार गया।
बन गया अंश खगवृंद वहां
वह गया बिसार था मैं कहां।
घुल गया नए परिवेश में वह
भूला मिट्टी और देश को वह।
हो गई नीड सूनी सूनी
सब बाट जोहते दिन दूनी
और सूख गई तब वह डाली
मुस्काती थी कभी खुशियाली।
भागीरथ प्रसाद