नीच जाति
कमालपुर गांव में इस बात की खुशी मनाई जा रही थी। अखबारों और टी.वी. चैनलों को भी काम मिलने वाला था। मतलब, नेताजी का पलड़ा पूरी तरह से सवाया हो रहा था। उसी दिन शाम से चुनाव प्रचार का समय भी खत्म हो चुका था। मतलब साफ है, अब कोई अन्य नेता चाहकर भी मिश्रः जी की तरह वाहवाही नहीं लूट सकता था।
बात विधानसभा के आम चुनाव के दौरान की है। कल्लू ने पत्नी सुखदेवी उर्फ सुखिया और बच्चों के साथ सुबह से ही अपने घर की सफाई शुरू कर दी थी। परिवार के सारे लोग सफाई में लगे हुए थे। यहां तक कि आस-पड़ोस की महिलाएं और लड़कियां भी काम में हाथ बंटा रही थीं। कुल मिलाकर घर में उत्सव जैसा माहौल था। दरअस्ल, माननीय पूर्व मंत्री और विधायक पद के उम्मीदवार विजय मिश्रः कमालपुर में दलित कल्लू के घर भोजन करने आ रहे थे। सबसे ऊंची जाति के नेताजी सबसे नीची जाति वाले के घर आएंगे, इस कल्पना मात्र से ही कल्लू फूला नहीं समा रहा था।
कल्लू की पत्नी सुखिया ने पड़ोसी महिलाओं की मदद से अपनी हैसियत के मुताबिक खाने का अच्छा इंतिजाम किया था, वह भी गांव की बुजुर्ग ताइयों-चाचियों के निर्देशन में। खैर, गांव के बच्चों, युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं में भी एक अलग ही उत्साह था। नेताजी अपने निर्धारित समय से दो घंटे देरी से पहुंचे। कल्लू और सुखिया ने नेताजी की आवभगत शुरू कर दी। उन्होंने आनन-फानन में मिश्रः जी और उनके चेले-चपाटों के लिए खास तरह से बनाए गए खाने परोस दिए… ।
अरे, यह क्या? नेताजी ने उस खाने का नमक भी नहीं चखा। यहां तक कि पानी भी नहीं, बहाना था कि डॉक्टर ने मिनरल वाटर बोला है। अपने साथ लाया हुआ खाना खाया, फोटो खिंचाए, वीडियो बनवाई और बात खत्म। नेताजी ने कल्लू का दिल रखने के लिए सिर्फ इतना ही कहा कि हम गरीबों पर बोझ नहीं बनते, इसलिए खाना साथ लेकर आए हैं। फिर क्या था, महिमा मंडन की सारी कसर मीडिया वाले पूरी कर रहे थे। गुणगान करने वाली खबरों में नेताजी छाए हुए थे। अब कल्लू और सुखिया एक बार यह सोचने को मजबूर थे, क्या हम सचमुच नीच हैं?
© अरशद रसूल