नींव के पत्थर
(जिन भव्य भवनों, ऊंची अट्टालिकाओं, महलों – राजप्रसादों के शिखर – कंगूरे आकाश से बातें कर रहे हैं, उन्हीं की नींव के पत्थरों को समर्पित है यह कविता)
* * * नींव के पत्थर * * *
जब – जब सावन आया होगा
तेरे नयनों से शरमाया होगा
दे दे अपना कंत सखी
सर्द हवाओं ने कहलाया होगा
मंदिर से उठ गए जब देवता
पत्थर से मन बहलाया होगा
तुझे मानते हैं उर्मिला अवतार हम
हैं तेरे देनदार हम !
सूरज की असंख्य रश्मियां
तेरी जीवन – ज्योति एक है
हीरा के हीरे और भी हैं
तेरे मन का मोती एक है
बलवानों के अनेक धन
तेरा नेक धन विवेक है
मां भारती से तेरा प्यार हम
हैं तेरे देनदार हम !
किसी ने भाई किसी ने भगवान कहा
पत्ता – पत्ता पहचान रहा
परदेसी हुए को युग बीते
तुझे आज भी अपनी मान रहा
दुनिया उस को जान रही
वो दुनिया को छान रहा
मंदिर में लगी कतार हम
हैं तेरे देनदार हम !
पेड़ों के पात जब हरे होंगे
खोटे सिक्के सब खरे होंगे
अपनी होगी दुनिया सारी
लुटेरे चोर ठग परे होंगे
मां की कोख लजाने वाले
अपनी मौत मरे होंगे
दुष्टों को अंतिम नमस्कार हम
हैं तेरे देनदार हम !
शील बुद्धि धीरज ममता से तेरा सजना
मां भारती का तू गहना
आगे और मिलेंगी टोलियां पसारे झोलियां
तू न किसी से न कहना
पीछे और आएंगे भूखे – प्यासे हे माता
तू सदा – सदा यहीं रहना
यशोदा तेरा हैं परिवार हम
हैं तेरे देनदार हम !
२९-११-२०१६ –वेदप्रकाश लाम्बा
९४६६०-१७३१२