नींव का पत्थर
एक छंदमुक्त रचना
नींव का पत्थर
==========
क्यों कुरेदते हो मुझे,
ये दर्द मुझे सहने दो
मैं नींव का पत्थर हूँ,
मुझे यूँ ही दबा रहने दो
तुम्हारी ऊँचाइयाँ,
ये ठाट बाट,
तुमको मुबारक
मेरी हसरतों,
मेरे दर्द से
तुमको क्या मतलब
मत दिखलाओ घड़ियाली दृग,
ये टीस मुझे सहने दो
मैं नींव का पत्थर हूँ,
मुझे यूँ ही दबा रहने दो
ये बुलंदियाँ,
जिनपे तुम नाज करते हो
धरी ही रह जाएंगी
जरा सा मैं हिला तो,
भरभरा के गिर जाएंगी
छेड़ो मत तनिक भी,
मुझे यूँ ही पड़ा रहने दो
मैं नींव का पत्थर हूँ,
मुझे यूँ ही दबा रहने दो
नहीं हूँ संवेदनशील,
माता पिता सा,
जो मिटाते हैं खुद को,
तुम्हैं कुछ बनाने को
जो सहते ही जाते हैं
और अब बुढ़ापे में,
बेबस से रहते हैं
तुम जानते हो
वे सहते आए हैं,
अब भी सह लेंगे,
उन्हें सहने दो
मैं तो संवेदन शून्य हूँ
मुझे जड़वत ही रहने दो
मैं नींव का पत्थर हूँ,
मुझे यूँ ही दबा रहने दो
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
9456641400